परिमल
वर्मा और देवकी
वर्मा पिछले २६
सालों से उज्जैनके गोवर्धननगरमें रहेते
थे। मुलतः वे
बलिया के रहनेवाले थे, पर खुदका
बिजनेस शुरु करने
के चक्करमें सालों
से उज्जैनमें ही
स्थायी हो गये
थे। आज उनका
कारोबार काफी अच्छा था,
पर २६ साल
पहेले जब परिमल
अपने माता-पिता
और भाईओंको छोड़कर
ईस अन्जान शहरमें
आये तब उनके
पास ज्यादा संपत्ति नहीं
थी। देवकी के
पिताजी एक रईस
ईंडस्ट्रीयालिस्ट
थे, लेकिन परिमल
के साथ देवकी
की शादी करानें
के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने देवकीके बचपनमें अपनें
एक दोस्तके बेटे
से देवकीकी शादी
तय कर दी
थी। देवकीने अपने
पिताजीको खूब मनानेकी कोशिश
की लेकिन वे
टस से मस
नहीं हुए। देवकी
भी बचपनसे बड़ी
झीद्दी थी। आखिरकर
उसने परिमलके साथ कोर्टमेरेज कर ली। यह
खबरको सुनते ही
उसके पिताजीने ट्रेन
से गीर कर
आत्महत्या कर ली। ईस
वजहसें देवकीके परिवारवालों ने
उससे नाता तोड़
दिया और परिमलके साथे
देवकी उज्जैन आ
गई। ईश्वरकी कृपासें शादी
के एक साल
बाद उन्हें एक
परी जैसी बेटी
हुई, नाम उसका
अंजली। अंजली बहुत
ही होनहार और
खुश-मिजाजी लड़की
थी। जब स्कूलमें थी
तब हर विषयमें अच्छे
गुण लाती और
अपने माता-पिताका
नाम रोशन करती।
स्पोर्टसमें भी उसकी बड़ी
दिलचस्पी थी।
वर्मा परिवारकी सभी चीजें सही थी, सिवाय एक के देवकीका स्वभाव द्वेषी था, वह किसी और का भला नहीं देख पाती थी। जब भी किसीका भला हो रहा होता तब वह कुछ ना कुछ करके उस भले को बुरा करनेमें जुट जाती थी। परिमलने उसे कई बार समजाया लेकिन देवकीने उनकी एक ना सुनी। वह रोज दोपहरमें अपने घरके आंगनमें बैठती और आते-जाते लोगो पर नजर रखती। लोगों की चुगली करना और लोगोंके घरोंमें झगड़े लगाना उसके जैसे आदत सी बन गई थी।
वर्मा परिवारकी सभी चीजें सही थी, सिवाय एक के देवकीका स्वभाव द्वेषी था, वह किसी और का भला नहीं देख पाती थी। जब भी किसीका भला हो रहा होता तब वह कुछ ना कुछ करके उस भले को बुरा करनेमें जुट जाती थी। परिमलने उसे कई बार समजाया लेकिन देवकीने उनकी एक ना सुनी। वह रोज दोपहरमें अपने घरके आंगनमें बैठती और आते-जाते लोगो पर नजर रखती। लोगों की चुगली करना और लोगोंके घरोंमें झगड़े लगाना उसके जैसे आदत सी बन गई थी।
उनके
पडोसमें गजेन्द्र नामका एक आदमी
रहेता था जो
हररोज दारु पिकर
घर आता और
अपनी पत्नी को
मारता। देवकी को
यह सब सुनकर
बहुत अच्छा लगता।
एक बार उनकें
पडोसी गजेन्द्रकी बीवी
घर पर अकेली
थी। तब गजेन्द्रका एक
दोस्त उससे मिलने
उसके घर आया।
घर पर गजेन्द्र नहीं
है यह देवकीको पता
था, और ईसीलिए
उसने घर के
बाहरसें गजेन्द्र को फोन लगाकर
बताया, "अरे गजेन्द्रभाई, आप जब
भी घर से
बाहर जातें हो,
तब तुम्हारा एक
दोस्त तुम्हारे घर
पर आता है।
एकाद बार तो
मुझे लगा की
वह कुछ काम
से आय होगा
पर अब तो
वह रोज आने
लगा है। मैं
तो बस आपको
बता रही हुँ।"
गजेन्द्र जब घर पर
आया तब उसका
दोस्त चला गया
था पर गजेन्द्रको लगा
की उसकी पत्नीने दोस्त
को घरसें बाहर
भेज दिया और
नशेमें धूत गजेन्द्रने उसें
खूब पीटा। दुसरे
दिन उसकी पत्नी
घर छोड़ कर
अपने मायके चली
गई। परिमलने देवकीको फिर
समझाया की यह
सब तुम्हारी वजहसें
हुआ है। देवकीने उनकी
बात को टाल
दिया।
कुछ
दिन देवकी शांत
रही पर फिर
से उसे किसीकी
खिल्ली उडानें की
ईच्छा हुई। ईस
बार उसने अपने
सामनेवाले घरमें रहेनेवाली सुभद्राचाचीको लपेटमें लिया।
सुभद्राकी बेटी सुमन भी
अंजलीके साथ ही पढ़ाई
करती थी पर
दोनों की स्कूल
अलग थी। महोल्लेमें सुमन
हंमेशा अव्वल आती
और अंजली दुसरे
क्रम पर। एक
बार सुमन रात
को देर तक
घर नहीं आयी।
उसे कोलेज से
नीकलने में देर
हो चूकी थी, तब कोलेजका कोई
चपरासी उसे घर छोड़ने आया। खिडकीमें से देवकीने यह देख लिया। उसे तो तरना था और पानी का बहाव मिल गया। दूसरे दिन
सुबहमें उसने रास्ते पर
आते-जाते सभी लोगों को बताया की सुमनका कोलेज के चपरासी के साथ कोई चक्कर चल रहा है!
यह बात महोल्लेमें आग
की तरह फैल
गई और सुमनके
लिए रिश्ते आने
ही बंद हो
गये। सुभद्राचाची करे
तो भी क्या?
उन्होनें अपनी बेटी को
लेकर यह महोल्ला छोड़
दिया और कहीं
दूर महोल्लेंमें रहने
चली गई। ईस
तरह, सारा महोल्ला देवकीके ईस
स्वभावसे वाकिफ था और
सभी लोग उससें
कोसों दूर रहते
थे। लोग मन
ही मन उसे
बहुत कोसते और
बददुआ देते पर
देवकीका कोई बाल भी
बांका नहीं कर
सका।
ऐसेमें
एक दिन अंजली
के लिए टांझानियासे एक
रिश्ता आया। लड़का
बड़ा ही सुशील
और पैसेवाला था।
उसके माता-पिता
भी वहीं टांझानियामें सालों
से रहेते थे।
उनकी वहा कॉफी
बनाने की फेक्ट्री थी।
अंजली को लड़का
पसंद आ गया
और परिमल-देवकीने भी
अंजली के हाथ
पीले करनेका सोच
लिया। बड़े धूम-धामसें दोनों की
शादी हुई और
शादी के बाद
अंजली अपने पति
के साथ टांझानिया शिफ्ट
हो गई। वहाँ
उसे भारतमें हो
उससे भी बढ़िया
बंगला और गाड़ीवाला घर
मिला। बेटी को
अच्छा घर और
पति मिल गये,
ईसलिए परिमल और
देवकी भी अब
बेफिक्र हो गए थे।
देवकी को अब
पहेलें से ज्यादा
पावर आ गई
थी। वह अब
लोगों को चिल्ला
चिल्ला कर बताती
- देखा कैसा वर
ढूंढा है हमने
अपनी लाड़ो के
लिए? यहाँ पर
थी उससे १५
गुनी संपत्ति है
उनके पास। और
ईकलौता लड़का। अब
क्या चाहिए? उसके
महोल्लें के लोग भी
सोचने लगे के
जब देवकीने अच्छे
कर्म कभी किये
ही नहीं तो
ईतना अच्छा फल
कैसे मिल सकता
है? लगता है
भगवानसे देवकीके हिसाबमें कोई भूल हो गई है, वरना
दुनियाभरकी चुगली करनेवाली देवकी
को ईतना अच्छा
दामाद कैसे मिला
होगा?
अब
देवकी लोगों के
घर तोड़नेमें माहिर
हो गई थी।
वह हंमेशा किसी
ना किसी को
अपनी करतूतों से
परेशान करती थी।
ऐसेमें देढ़ साल
बीत गया। हरदिन
शामकों उसकी अंजली
के साथ बात
होती थी, पर
आजका दिन बड़ा
शुभ था। अंजली
माँ बनने वाली
थी। यह सुनकर
देवकीने दामादको फुसलाकर अंजलीको बच्चेकी डिलीवरी के लिए भारत
बुला लिया। अंजली
भारत आयी और
उसकी खुब अच्छे
से देखभाल हुई।
९ महिने बाद
अंजलीने एक बेटे को
जन्म दिया। लेकिन
बेटेको देखकर ही
देवकी चौंक गई।
बच्चा एकदम काला,
घुंघरालें बाल और चहेरा
एक नीग्रो जैसा
था। तुरंत ही
परिमलजीने बच्चे का फोटो
उसके पापाको ईमेल
पर भेज दिया।
उस ईमेल को
देख टांझानियामें अंजलीके ससुरालवालें भी
चौंक गए। उन्होंने परिमलजी को
या अंजलीको वापस
फोन तक नहीं
किया। लगभग ४
दिन बाद, उनके
घर एक वकील
कोर्ट की नोटीस
लेकर आया। नोटीसमें साफ
साफ शब्दोमें तलाक
के बारे में
लिखा था। हुआ
कुछ युँ था
की जब अंजली
टांझानियामें थी तब उसे
अपने घरके एक
नीग्रो नौकरसें प्यार
हो गया था।
जब उसके पतिको
पता चला तो
उसने उस नौकरको
नौकरीसे निकाल दिया और
अंजलीको चेतावनी देकर मामला सुलझा
दिया। फिर जब
यह बच्चा पैदा
हुआ तब अंजलीके पति
को सबकुछ समझ
गया। जी हां,
वह बच्चा उसी
नीग्रो नौकरका था।
नौकरीसे नीकालने के बावजूद वह
नीग्रो और अंजली
एकदुसरे से अकेलेमें मिलते
थे। एक दिन
उनका मिलन ऐसे
मुकाम पर पहोंच
गया की अंजली
गर्भवती हो गई। तब तक उसके पतिको
यह मालूम नहीं
था, वह तो
उसी धूनमें था
की वह बच्चा
उसका है। पर
आज बच्चे के
जन्म पर सब
को सब कुछ
समझ आ गया। नोटीस
मिलते ही देवकी
और परिमलजी के
पाँवो तले से
जमीन नीकल गई।
पूरे महोल्लेमें बदनामी
हो गई और
उस नीग्रो बच्चे
को अब कोई
अपनाना भी नहीं
चाहता था। देवकी,
परिमल और अंजली
खूब रोएँ पर
भगवानने या महोल्लेवालोंनें उनकी
एक न सुनी।
देवकीके कर्मो की सजा
उसकी बेटी और
नातू को मिली।
किसीने सच ही
कहा है की
भगवानकी लाठीमें कभी आवाज नहीं
होती।